Bimal Kumar Ghosh (Bablu Da) | Bimala Sweets

March 1, 2023

आई आई टी खड़गपुर का कैंपस अगर वाकई में ‘एक शहर-जैसा’ प्रतीत होता है, तो तमाम तरह कि दुकानों के बीच बिन मिठाई की दुकान के, प्रसिद्ध ‘मिष्टी-प्रेमी’ बंगाली उपनाम कुछ अजीब मालुम पड़ता।

इसी सन्दर्भ में कैंपस निवासियों के जिह्वा को वर्षों से मिठास प्रदान करने वाली एवं उनको ‘मिष्टी-सुख’ का एहसास कराने वाली एक दूकान है- टेक-एम के भीतरी भाग में स्थित – ‘बिमला स्वीट्स’, जो पूरे टेक मार्केट की सबसे पुरानी दुकान भी है। इस दुकान के मालिक, श्री बिमल कुमार घोष, जिनको लोग प्यार से “बाबलू दा” भी बुलाते हैं, हमें बताते हैं की दुकान की शुरुआत सन् 1978 में उनके पिताजी ने की थी। तब वह दुकान अस्थायी रूप से टेक-एम के मध्य भाग में था। कुछ समय बाद ही उसका स्थान बदल कर भीतरी भाग में कर दिया गया। आगे वो बताते हैं कि कैम्पस के अतिरिक्त उनके दुकान कि एक और शाखा प्रेमबाज़ार में भी है।

अत्यंत नम्र और खुशदिल व्यव्हार के हमारे 74 वर्षीय बाबलू दा का जन्मस्थल खड़गपुर ही है। अपनी स्कूली शिक्षा भी उन्होंने यहीं से प्राप्त की और शिक्षा के दौरान ही उन्होंने पिताजी का हाथ बटाना शुरू कर दिया। तबसे लेकर आजतक दादा दुकान में पूर्ण समर्पण-भाव से कार्यरत हैं। विवाह के बाद उनकी पत्नी भी उनके संग दुकान का कारोबार देखती हैं। दुकान के संदर्भ में ऐसे कुछ दिलचस्प तथ्य हैं जो दादा ने हमारे साथ सांझा करते हैं। दुकान का नामकरण “बिमला स्वीट्स” ही क्यूँ हुआ, इसके बारे में दादा बताते हैं कि एक बार वो सपरिवार जगन्नाथ धाम को गए थे। वहाँ पर स्थित एक प्रख्यात शक्तिपीठ (जो “बिमला देवी” नामक एक हिन्दू देवी पर समर्पित है), से प्रेरणा लेकर और देवी के प्रति अपार श्रद्धा के फलस्वरूप दुकान का नाम “बिमला स्वीट्स” रखा गया। दादा फिर मुस्कुराते हुए बताते हैं कि संजोग से उनका नाम ही बिमल है, जो दुकान के इस नामकरण को और अधिक प्रभावी बनाता है।

कैम्पस निवासियों के बीच दादा की दुकान सदा से लोकप्रिय रही है। रोशोगुल्ला हो या सोंदेश के अनेक प्रकार, सामान्य मिठाइयों से लेकर स्थानीय मिठाइयाँ, सब इस दुकान में उपलब्ध रहती है, जो इसकी लोकप्रियता का एक मुख्य कारण है। पर दादा बताते हैं कि इन सभी मिठाइयों में से एक मिठाई है, जो सबको इधर काफी पसंद है- रोशोमलाई।

उनके दुकान की लोकप्रियता और उसके प्रति लोगों का जुड़ाव, इस बात से अंकित हो सकता है कि कैम्पस के विद्यार्थी ग्रेजुएट होने के बाद भी इस दुकान में मिठाइयाँ खरीदने आते हैं, कभी अकेले तो कभी अपने दोस्तों को लेकर, तो कभी अपने बीवी-बच्चों के साथ। संस्थान के प्रोफेसरगण और उनके गृहजन भी मिठाइयों के बहाने अक्सर दुकान का दौरा मार ही लेते हैं। कुछ लोगों का जुड़ाव इस दुकान और इसकी मिठाइयों से इस हद तक भी है कि वे मिठाइयाँ विदेश-दौरे के लिए भी अपने साथ ले जाते हैं। ये तथ्य इसी बात की सांकेतिक हैं, कि इन सभी वर्षों में दादा, उनकी पत्नी और उनके कर्मचारियों का अपने कई ग्राहकों के साथ आत्मीय संबंध भी स्थापित हुए हैं, जो दादा बताते हैं कि बिल्कुल प्राकृतिक रूप से ही हुए हैं। यहाँ पर दादा अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहते हैं, कि उनके दुकान कि गरिमा और पहुँच, उनके बेटों द्वारा जारी रहे और आने वाला भविष्य उनके दुकान के लिए नए उन्नति के मार्ग प्रकट करे।

पर इस दुकान ने हाल में घटित कोविड महामारी और लौकडाउन जैसी स्थितियों के बाद इन संबंधों में और ग्राहकों की मात्रा में कई परिवर्तन देखे हैं। दादा बताते हैं कि लौकडाउन के दौरान उनके व्यापार में भारी गिरावट आई थी, जिसके कारण कर्मचारियों को कम वेतन से ही गुज़ारा चलाना पड़ रहा था। इस कठिन समय में इंस्टीट्यूट के एड्मिन से उनको काफी मदद मिली, जैसे- उनके लिए राशन की व्यवस्था एड्मिन ही कर देती थी। तथापि स्थितियाँ ज्यादा नहीं सुधरी और कोविड के बाद भी पूरे मार्केट में लौकडाउन का असर प्रत्यक्ष मालूम पड़ता था। अब ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते ट्रेंड के चलते ग्राहक अपनी अधिकांश ज़रूरतें उसी के माध्यम से पूरी कर लेते हैं, जिससे टेक-एम के सारे दुकानों के ग्राहक कम हुए हैं।

पर व्यापार में गिरावट के अतिरिक्त जो बदलाव दादा को सबसे अधिक कचोटती है, वो है- कैम्पस कल्चर और विद्यार्थियों के दिनचर्या में बदलाव।

दादा बताते हैं कि पहले के समय में दुकान में “students” नहीं “student gangs” आती थीं। एक बार तो ऐसा हुआ था कि लगभग 150 जितने विद्यार्थी एक साथ आके दुकान के बाहर बैठ गए, रसगुल्ले और जलेबी खाने! (शायद वे सब एक ही हॉल के थे।) आज का समय पहले जैसा न रहा क्योंकि उनके अनुसार आज के विद्यार्थियों पर “academic load” अधिक हो गया है। और इस “डिजिटल एज” में विद्यार्थियों का अधिकांश समय स्क्रीन पर ही चला जाता है, जिसके कारण वे अपने आसपास वालों से कम मिलनसार हो गए हैं। विद्यार्थियों के दिनचर्या में यही बदलाव आज पूरे “KGP कल्चर” को बेहद मुख्य रूप से प्रभावित कर रही है।

यह अत्यंत सराहनीय है कि महामारी और छात्र व्यवहार में बदलाव से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, दुकान ने छात्रों, पूर्व छात्रों, प्रोफेसरों और प्रशासन के साथ अपनी लोकप्रियता और संबंधों को बनाए रखा है। दादा कहते हैं कि आज भी सभी विद्यार्थी उनके बच्चों समान हैं।

बाबलू दादा इस साक्षात्कार के दौरान अपनी जवानी के दिनों के कई किस्से प्रसन्नता के साथ बताते है। चाहे उनका वामपंथी आंदोलन एवं सभाओ में नियमित रूप से पहुंचना हो या भारत पाकिस्तान युद्ध के अनसुने KGP के किस्से, उनका उत्साह हमें निरंतर विस्मित करता रहा। वह IIT खड़गपुर से एक अनोखे सम्बन्ध होने की बात करते हैं, और हमें मिष्ठान एवं जलपान के साथ विदा देते हैं।